Ek kavita aisi  bhi...  एक कविता ऐसी भी...

रचनाओं के माध्यम से साहित्य का सृजन , और समाज को नई दिशा...

Friday 30 December 2016

........ अभी देर है।

जमीं से फलक तक पहुंचने में अभी देर है।
सूत रेशों से पोशाक के बनने में अभी देर है।
अंकुरित हैं चंद बीज जो भी भू की कोख में,
उन बीज से फिर बीज के बनने में अभी देर है।

ख्वाबों में यूं तो हर रोज एक नया ख्वाब होता है,
उस ख्वाब को हकीकत में बदल जाने में अभी देर है

सजा लो लाख दरवाजे,दीवारें, महल या कोठी
बहुमूल्य इमारत से घर को बनाने में अभी देर है।

क्यों समझाते हो उन्हें, कद्र क्या है रिश्तों की
जिन्हें रिश्ता  ही समझने में अभी देर है।

जिसकी तस्वीर आब - ऐ - चश्म से धुलता रहा,
उसे तुझ तक तो पहुंचने में  अभी देर है।

यकीनन हुआ गुनाह है, पर सजा दे  तो किसे,
कसूर किसका है समझने में अभी देर है।

यूं तो दो दिल मिलाने की लाख कोशिश करी होगी,
मगर दो जिस्म को एक जान होने में अभी देर है

सबूत क्या है यहां प्यार किया है तुमने,
गवाही कौन देगा तू ही सच्चा आशिक है।
मुकदमा हाल ही में दर्ज हुआ इश्क की अदालत में,  नतीजे सामने आने में अभी देर है।।।

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